चिंता: भारत की आबादी पर यूएन की रिपोर्ट ने सबको चौंकाया।

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चिंता: आबादी पर यूएन की रिपोर्ट ने सबको चौंकाया। भारत अगले साल दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला मुल्क होने जा रहा है, इस खबर ने जितना चौंकाया है, उतना ही चिंतित भी किया है। विश्व जनसंख्या दिवस पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट ने बताया है कि भारत साल 2023 में ही चीन से ज्यादा आबादी वाला देश हो जाएगा। पहले यह अनुमान लगाया जा रहा था कि साल 2027 में भारत दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश होगा। मतलब अनुमान से चार वर्ष पहले ही भारत दुनिया में सर्वाधिक आबादी वाले देश के रूप में बताया और पढ़ाया जाएगा।

संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट बताती है, नवंबर 2022 के मध्य तक दुनिया की आबादी आठ अरब हो जाने का अनुमान है। पूरी दुनिया की आबादी में अकेले एशिया की 61 फीसदी हिस्सेदारी है।यह रिपोर्ट साफ इशारा करती है कि जहां कम आबादी है, वहां ज्यादा संपन्नता है, पर ज्यादा आबादी वाले देशों में अगर अभाव है, तो वहां मानव संसाधन विकास पर होने वाले खर्च को एक बार जरूर देखना चाहिए। प्रतिव्यक्ति आय को भी देखना चाहिए।

संयुक्त राष्ट्र के ताजा अनुमान के बाद भारत के लिए चुनौतियां बहुत बढ़ जाएंगी। हमारी जनसंख्या नियंत्रण संबंधी नीतियां बहुत उदार रही हैं, जिसकी वजह से हम आबादी बढ़ने की रफ्तार को जरूरत के हिसाब से थाम नहीं पाए। चीन ने साल 1979 में ही एक संतान नीति को पूरी कड़ाई से लागू कर दिया था, इसका नतीजा हुआ कि उसे आबादी की रफ्तार रोकने में कामयाबी मिली। ध्यान देने की जरूरत है कि साल 1800 में भारत की जनसंख्या लगभग 16.90 करोड़ थी।

चीन आबादी के मामले में कभी भारत से लगभग दोगुना था। 1950 के बाद दोनों देशों की आबादी तेजी से बढ़ने लगी। साल 1980 में चीन एक अरब जनसंख्या तक पहुंच गया। इसके ठीक एक वर्ष पहले वहां एक संतान की नीति लागू हुई थी। भारत साल 2000 में एक अरब के आंकडे़ के पार पहुंचा और अब अगले साल चीन से आगे निकलने जा रहा है। चीन एक संतान की नीति को 2016 में वापस ले चुका है, लेकिन इसके बावजूद वहां आबादी तेजी से नहीं बढ़ेगी, क्योंकि वहां की संस्कृति और सोच, दोनों में बदलाव आ चुका है।

भारत के पास अब कड़ाई के अलावा कोई रास्ता नहीं है। सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि चीन और भारत की तुलना नहीं हो। भारत जन-सघनता के मामले में चीन से तीन गुना आगे है। चीन भौगोलिक रूप से बड़ा देश है और वहां अर्थव्यवस्था का विकास भी बहुत तेज है। भारत को न केवल अपने मानव संसाधन विकास को, बल्कि जनसंख्या नियंत्रण की नीतियों को भी नख-दंतवान करना होगा।

मानव संसाधन व स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाना जरूरी है, ताकि लोगों में जागरूकता आए। जनसंख्या दिवस पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने बिल्कुल सही कहा है कि जनसंख्या स्थिरीकरण के प्रयासों से सभी मत, मजहब, वर्ग को समान रूप से जोड़ा जाना चाहिए।

वाकई, देश के एक बड़े तबके में जागरूकता आई है, लोग ज्यादा आबादी के मायने समझने लगे हैं, लेकिन अब भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो आबादी को समस्या नहीं मानते। ऐसे लोगों को अब अलग से चिह्नित करना होगा। ऐसे लोगों को व्यावहारिक रूप से समझाने की जरूरत है और साथ ही, कड़ाई के नए पैमाने तय करने पड़ेंगे। पुरानी पाबंदियां नाकाम हो चुकी हैं। http://dhunt.in/CcYcZ?s=a&uu=0x5f088b84e733753e&ss=pd Source : “NARENDER”

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