दिल्ली में जब नूर बाई की चर्चा शुरू होती थी तो आसानी से नहीं थमती थी. लोग उसकी खूबसूरती के कायल थे. मुगल बादशाह किस कदर उसका दीवाना था यह इस बात से समझा जा सकता है कि उसकी हवेली के बाहर मुगलों के हाथी खड़े रहते थे. बादशाह की तरफ से बेशकीमती तोहफे मिलते थे. जब वो हाथी पर बैठकर दिल्ली की सड़कों पर निकलती थी तो देखने वालों की भीड़ लग जाया करती थी.पता चलते ही नीयत बदल गई
समय के साथ नूर और मुगल बादशाह मुहम्मद शाह ‘रंगीला’ के बीच करीबी बढ़ती जा रही थी. इस बीच नूर को पता चला कि बादशाह अपनी पगड़ी में हीरा रखते हैं. यह सुनते ही नूर के मन में लालच पनपने लगा और उसकी नीयत बदल गई.1739 में ईरानी बादशाह नादिर शाह ने सल्तनत के 13वें बादशाह रंगीला से सिंहासन छीन लिया, लेकिन 56 दिन बाद ईरान वापसी लौटने का फैसला लिया. इस दौरान नादिर ने बादशाह के खजाने को लूटा. हर वो चीज अपने पास रख ली जो उसे पसंद आई. और अंत में ईरान निकलते वक्त हिन्दुस्तान की कमान वापस मोहम्मद शाह को सौंपने की बात कही.यूं मुगलों से छिन गयाकोहिनूर
दरबार में मजमा लग गया और यहां पर कुछ ऐसा हुआ जो सिर्फ कुछ ही लोग समझ पाए. नादिर शाह ने कमान वापस देने और शांति समझौते के नाम पर बादशाह को बुलाया. नादिर ने चालाकी दिखाई और रिवाज का हवाला देते हुए पगड़ी बदलने की बात कही. बादशाह के पास नादिर को न कहने का कोई विकल्प नहीं था क्योंकि उसे बड़ी आसानी से खोई हुई सत्ता वापस मिल रही थी. इसलिए उसने पगड़ी बदलने की बात पर मुंह बंद रखा.इस धोखे की पटकथा लिखी थी नूर बाई ने. कई इतिहासकारों का मानना है कि नूर बादशाह को पसंद नहीं करती थी. इसलिए उसने हीरे को ताकतवर नादिर को दिलाकर उसकी नजर में उसका करीबी बनने की कोशिश की. नूर बाई ने ही नादिर को बताया कि दुनिया का सबसे नायाब हीरा बादशाह की पगड़ी में है. इस तरह मुगल बादशाह के हाथ से कोहिनूर चला गया जो उसके लिए किसी बेशकीमती खजाने से कम नहीं था.
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