हिमाचल में स्वास्थ्य के हाल बद से बदतर होते जा रहे हैं। आज जो बचे 2019 में एमबीबीएस करने के लिए हिमाचल के मेडिकल कालेजस में गये थे आज वह डॉक्टर बन के इन कालेजस से निकल आये परंतु जब गये थे तब यह नहीं सोचा था कि हर साल हिमाचल के फैक्ट्री नुमा कॉलेज्स से हर साल 870 डॉक्टर्स निकल रहे हैं और जो ऑल इंडिया कोटे से दूसरी स्टेट्स से करे के वापिस आये एमबीबीएस की संख्या मिला दी जाये तो 1000 डॉक्टर हर साल बिना नौकरी के तयार हो रहे हैं।
अगर आप ध्यान से पिछले कुछ समय से न्यूज़पेपर्स पे ध्यान दें तो हिमाचल में प्राइवेट हॉस्पिटल्स से जायदा सरकारी हॉस्पिटल्स पे बिस्वास करते थे परंतु जिस रफ़्तार से हिमाचल में प्राइवेट हॉस्पिटल्स पनप रहे हैं इस का यही संकेत है कि उन प्राइवेट हॉस्पिटल्स को क्लाइंट मिल रहे हैं। 2016 बैच के डॉक्टरों के बाद अभी तक सरकारी निक्युतियाँ नहीं हुई हैं। 2017 , 2018, 2019 बैच के बचे या तो इका दुक्का प्राइवेट हॉस्पिटल्स में इमरजेंसी ड्यूटियाँ दे रहे हैं या कुछ एनजीओ की एम्बुलेंसें में लगे हैं या घर बैठ के एमडी/एमएस के एग्जाम की त्यारी कर रहे हैं।
सरकारी 6 मेडिकल कालेजस में पड़ाने वाले अध्यापक पूरे हैं नहीं , एमबीबीएस कर रहे बचों को मूलभूत सुविधाएँ हैं नहीं और सब से मुश्किल कहलाने वाली डिग्री अब मेट्रीमोनियल डिग्री बन के रह गई है।
अभी कुछ समय पहले डॉक्टरों अपना रोष प्रकट कर रहे थे कि एक तो उनका नोन प्रैक्टिसिंग अलाउंस बंद कर दिया दूसरा नये डॉक्टरों को भर्ती करने के बजाय अपने चाहितों को सेवाविस्तार का तोफा बाँट ने पे सरकार लगी है।
पहले डॉक्टरों की कमी को देखते रिटायरमेंट की उम्र 58 साल से 60 कर दी गई थी परंतु उस को दोबारा 58 करने से सरकार ऊँची कुर्सियों पे बैठे अपने वोट बैंक के चक्कर में ख़ास लोगों को फ़ायदा दे रही है ।
विपक्ष के लोग आये दिन स्वास्थ्य सेवाओं का रोना रोते रहते हैं अब देखते हैं सरकार क्या करवट बदलती है क्योंकि आज टांडा मेडिकल कॉलेज से नेता प्रतिपक्ष श्री जय राम ठाकुर जी की छोटी बेटी भी बेरोज़गारी की लाइन में आज पंक्ति की अंतिम दहलीज़ पे खड़ी हो गई है।
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