असुरक्षित परिसर: स्कूलों में भी सुरक्षित नहीं बच्चे, दिल्ली में बढ़ा जुर्म।दिल्ली के एक स्कूल में जिस तरह एक बच्ची से सामूहिक बलात्कार की घटना सामने आई है, उससे फिर यही पता चलता है कि यहां के आपराधिक परिदृश्य पर काबू पाने के लिए किए जाने वाले तमाम दावों के बावजूद महिलाओं का हर वर्ग बेहद असुरक्षा और जोखिम के दौर से गुजर रहा है। दिल्ली नगर निगम के स्कूल में पढ़ने वाली बच्ची महज दस साल की है और मुख्य अपराधी उसी स्कूल का चपरासी है। यह अजीब है कि कई स्तर पर जिस व्यक्ति की वजह से स्कूल के बच्चे खुद को सुरक्षित महसूस करते, उसी ने एक बच्ची को अपनी दरिंदगी का शिकार बना लिया। उस व्यक्ति के भीतर दबी आपराधिक कुंठा का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उसने न केवल खुद यह अपराध किया, बल्कि अपने कुछ साथियों को भी इसमें भागीदार बनाया।
घटना का पता भी तब चल सका, जब बच्ची ने स्कूल आना बंद कर दिया, परीक्षा में भी अनुपस्थित रही और एक शिक्षिका ने उसके परिवार से संपर्क किया।
राजधानी की कानून-व्यवस्था पर बड़ा सवाल
विडंबना है कि जिन स्कूलों को बच्चों के लिए सुरक्षित परिसर माना जाता है, वहां भी इस बात की गारंटी नहीं है कि बच्चे अपने खिलाफ किसी आशंका से पूरी तरह मुक्त होंगे। लेकिन यह स्कूल के दायरे में प्रशासन और दिल्ली की कानून-व्यवस्था पर एक गहरा सवाल जरूर है कि आखिर वहां के एक कर्मचारी के भीतर कानून का खौफ क्यों नहीं था। सही है कि एक घटना को आधार बना कर सभी स्कूलों को एक ही कठघरे में नहीं खड़ा किया जाना चाहिए।
कानून का खौफ नहीं होने से अपराध को मिलता है बढ़ावा
साथ ही किसी व्यक्ति के भीतर छिपी कुंठा का पता लगाना इतना आसान नहीं होता। लेकिन स्कूल जैसी जगह में सुरक्षा व्यवस्था, वहां पढ़ने वाले बच्चों के सुरक्षित आने और वहां से घर जाने को लेकर एक तंत्र और नियम-कायदे जरूर होने चाहिए, जिसमें किसी आपराधिक मानसिकता वाले व्यक्ति को कुछ भी अवांछित करने की हिम्मत न हो और ऐसा करने की गुंजाइश न बने। स्कूलों में प्रबंधन और उससे जुड़े लोग कुछ हद तक अपनी ओर से सजगता बरतते हैं, लेकिन व्यवस्था के स्तर पर यह सुनिश्चित न होने के चलते मौके की ताक में बैठे अपराधी कई बार अपनी मंशा में कामयाब हो जाते हैं।
विडंबना यह है कि राजधानी होने के नाते
अपराध रिकार्ड ब्यूरो के पिछले साल आए आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में 2021 में महिलाओं के विरुद्ध अपराध के मामलों में इकतालीस फीसद तक की बढ़ोतरी हुई, वहीं बच्चों के खिलाफ अपराधों में बत्तीस फीसद का इजाफा हो गया। ये आंकड़े बताते हैं कि देश की राजधानी में महिलाएं और खासतौर पर कम उम्र की बच्चियां किस स्तर की असुरक्षा से गुजर रही हैं।
एक तरह से उनका घर से कहीं भी बाहर निकलने और सुरक्षित लौट आने का रास्ता जोखिम से होकर गुजरता है, वह बाजार हो या स्कूल। यह स्थिति तब है, जब महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर सरकारों, पुलिस महकमों से लेकर समाज तक की ओर से अक्सर चिंता जताई जाती है, आंदोलन भी होते रहते हैं, तमाम कानून भी हैं। लेकिन अगर सामाजिक जागरूकता, संवेदनशीलता से लेकर सुरक्षा के मोर्चे पर महिलाएं और बच्चियां हर वक्त खतरे से दो-चार हैं, तो संपूर्णता में उस व्यवस्था को कैसे देखा जाएगा।
By Neha Sanwariya
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