गुजरात चुनाव हार कर भी AAP बन गई राष्ट्रीय पार्टी, ऐसे किया 10 सालों में किला फतह। अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने जब 2012 में आम आदमी पार्टी (AAP) लांच की, तो राजनीतिक पंडितों समेत कई लोगों ने इसे चंद रातों का उभार करार देकर खारिज कर दिया था। अरविंद केजरीवाल के पास कोई राजनीतिक अनुभव नहीं था।
वह एक पूर्व टैक्स अधिकारी थे, एक आरटीआई कार्यकर्ता और 2011 में अन्ना हजारे (Anna Hazare) के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से उभरे चेहरे थे, जो इसी आंदोलन से सुर्खियों में आए और फिर छा गए। भारतीय राजनीति में इन 10 वर्षों में दो बड़े उलटफेर हुए… भारतीय जनता पार्टी (BJP) का तेजी से अभ्युदय और उसी तेजी के साथ कांग्रेस (Congress) का पतन। इन दोनों राजनीतिक उलटफेर के बीच साझी कड़ी बना आप का एक राष्ट्रीय राजनीतिक खिलाड़ी के रूप में उभरना।
आप कैसे राष्ट्रीय पार्टी बनी
राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए किसी दल के पास कम से कम तीन राज्यों में दो प्रतिशत लोकसभा सीटें होनी चाहिए। यानी लोकसभा की क्षमता के लिहाज से 11 सांसद। इसके विपरीत लोकसभा में तो आप का एक भी सांसद नहीं है। संसद में नजर आने वाले राघव चड्ढा और संजय सिंह जैसे आप नेता वास्तव में राज्यसभा सदस्य हैं। राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे के लिए दूसरी कसौटी यह है कि किसी राजनीतिक दल के पास चार राज्यों में राज्य पार्टी की मान्यता होनी चाहिए। राज्य की पार्टी की मान्यता के लिए किसी पार्टी को विधानसभा चुनाव में छह प्रतिशत वोट यानी लगभग दो सीटों की आवश्यकता होती है। यदि उसका वोट शेयर छह प्रतिशत से कम है, तो तीन सीटों की आवश्यकता होती है। बस यही कसौटी आप अच्छे से पूरा कर रही है। आप की दिल्ली और पंजाब में भारी जनादेश वाली सरकारें हैं। गोवा में पार्टी 6.8 प्रतिशत वोट हासिल कर दो सीटों पर कब्जा कर इस आवश्यकता को पूरा कर चुकी है और अब पार्टी गुजरात में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत के आगे धूल-धूसरित होने के बावजूद राज्य स्तरीय पार्टी बनने के लिए तैयार दिखती है।
आप का अब तक का सफर
2012 में लांचिंग के बाद आप ने 2014 लोकसभा चुनाव में देश भर में 400 से अधिक उम्मीदवार उतारे थे। इसी लोकसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल वाराणसी में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने मैदान में थे, लेकिन तीन लाख से अधिक वोटों से उनके खाते में हार आई। केजरीवाल द्वारा भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का नेतृत्व करने के बाद समग्र लोकसभा चुनाव परिणाम भी कतई पक्ष में नहीं आए और आप को पंजाब की सिर्फ चार सीटों पर जीत से संतोष करना पड़ा। आप ने फरीदकोट, फतेहगढ़ साहिब, संगरूर और पटियाला लोकसभा सीट पर चुनाव जीतकर अपनी ही पार्टी के कई नेताओं को चौंका दिया था। इसके विपरीत 2019 के लोकसभा चुनाव में आप ने चुनिंदा सीटों पर ध्यान केंद्रित किया और नौ राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों की 40 सीटों पर दांव खेला। हालांकि एक बार फिर आप के खाते में निराशा आई और वह पंजाब की एक सीट संगरूर से चुनाव जीत सकी। इस कड़ी में गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल ने जमीनी हकीकत को स्वीकारते हुए कहा था कि भले ही जीत की संभावना न भी हो, लेकिन पूरी ताकत से प्रयास तो करना ही चाहिए। यही नहीं, आप अपने अस्तित्व में आने और दिल्ली विधानसभा चुनाव में जबर्दस्त सफलता हासिल करने के बाद पंजाब, गोवा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी लड़ चुकी है।
Source : “OneIndia”
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